उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गांव बलिया,
रात का समय,
पूरा गांव रोशनी में नहाया हुआ था,चारों तरफ शहनाइयों की गूंज थी , पेड़ पर झूलती झालरों से लेकर मंडप के बीच जलती हुई अग्नि तक, सब कुछ एक पवित्र बंधन का गवाह बनने को तैयार था। गांव की महिलाएं मंगलगीत गा रही थी, बच्चे आतिशबाज़ी में मग्न थे ,और बड़े-बुज़ुर्गों के चेहरे पर एक संतोष भरी मुस्कान फैली हुई थी।
मंडप के बीच बैठी थी बेला रावत, 18 साल की मासूम-सी लड़की। घूंघट में छिपा उसका चेहरा शर्म से गुलाबी हुआ पड़ा था , लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सा डर और सवाल था।
उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसके सपनों की शुरुआत इस तरह होगी—एक अनजान लड़के से शाद करके, एक ऐसे रिश्ते के लिए जो भावनाओं से नहीं, एक वचन से बंधा गया है।
शहनाई की धुन और मंत्रों के बीच अब मंडप में प्रवेश करता है रिवांश कुंद्रा। 20 साल का, लंबा, सधे कदमों वाला लड़का। उसके चेहरे पर भावनाओं की कोई झलक नहीं दिखाई दे रही थी —ना खुशी, ना गुस्सा, बस एक खालीपन। वो सिर झुकाए, चुपचाप मंडप में बैठ जाता है। उसके माता-पिता, पंडित और आसपास के लोग इस ‘संबंध’ को एक पवित्र रस्म मानते हैं मगर खुद दूल्हा-दुल्हन अभी तक इस रिश्ते को महसूस भी नहीं कर पा रहे थे।।
तभी पंडित जी की आवाज़ सुनाई देती है,"
“अब कन्यादान की विधि के लिए लड़की के पिता आगे आएं ”
बेला के पिता कांपते हाथों से अपनी बेटी का हाथ उठाते हैं। उनकी आंखों में नमी थी, लेकिन चेहरा मुस्कुराने की कोशिश कर रहा था , वो रिवांश के हाथ में बेला का हाथ रख देते हैं।
बेला के पिता धीरे से कहते हैं,"
“अब ये तुम्हारी ज़िम्मेदारी है बेटा मेरी बेटी का मान रखना।”
रिवांश कुछ नहीं कहता। बस सिर झुका लेता है।
फेरे शुरू होते हैं। बेला हर फेरे में एक छोटी सी उम्मीद पिरोती है—शायद ये रिश्ता आगे बढ़े, शायद ये साथ सच्चा हो।
शादी पूरी होती है। सभी तालियाँ बजाते हैं। ढोलक की थाप पर महिलाएं मंगलगीत गा रही हैं। लेकिन तभी अचानक से
रिवांश खड़ा होता है। उसकी आंखों में इस वक्त न भावना नजर आ रही थी और , न कोई पश्चाताप।
उसके इस तरह से उठने से सभी लोग रिवाँश की तरफ ही देखने लगते है।।
रिवांश सभी को देखते हुए, शांत मगर सख्त आवाज़ में कहता है,"“ये शादी सिर्फ एक वचन था। जो मेरे डैड ने किया था,इससे आगे कुछ भी नहीं। मेरे लिए इस शादी के कोई मायने नहीं है
मैं इसे अभी यहीं खत्म कर रहा हूँ।”
ये सुनकर सभी सब सन्न रह जाते हैं।बेला अपनी घुघट से ही रिवांश की ओर देखती हैं, जिसके आंखों में उसके लिए कोई भावनाएं नहीं नज़र आ रही थी। बेला की आंखों में एक सवाल, एक टूटती उम्मीद, और एक अनकही चीत्कार थी । जिसे वो अपने पति से पूछना चाहती थी कि अगर उसे इस शादी को मानना ही नहीं था तो उसने उससे शादी की ही क्यों??
वहीं रिवांश झटके से अपने गले से वरमाला उतारता है, और बिना एक बार भी बेला को देखे , बिना किसी को जवाब दिए, मंडप से बाहर चला जाता है।
वहीं बेला जो रिवाँश को रोकने के लिए अपने हाथ उठा ही रही थी। उसके हाथ अब हवा में ही रह जाते है
वो जो अभी कुछ पल पहले किसी के हाथ में था, अब खाली नज़र आ रहे थे।
बस पीछे रह जाती है बस आग की बुझती हुई लपटें, और एक ऐसी दुल्हन जिसे ब्याह तो मिला, मगर साथ नहीं। और वो बन कर रह गई एक छोड़ी हुई दुल्हन।
मंडप में जैसे सबकुछ थम जाता है। शहनाई की आवाज़ अब किसी को सुनाई नहीं देती। बेला की आंखों में नमी और शरीर में सिहरन दौड़ जाती है।
बेला के पिता—शिवप्रसाद रावत, जो अभी कुछ मिनट पहले अपनी बेटी का हाथ सौंप कर खुद को सबसे भाग्यशाली पिता समझ रहे थे, हकबका कर उठ खड़े होते हैं।
शिवप्रसाद हैरान, और डगमगाती आवाज़ में कहते है,"
“रुक... रिवांश बेटा ये क्या कह रहे हो तुम ये मज़ाक नहीं ”
ये कहते हुए अचानक से उनकी उनकी सांसें तेज़ हो जाती हैं। उन्होंने अपने सीने पर हाथ रखा और अगले ही पल वो धम्मम से नीचे गिर जाते हैं।
वहीं बेला अपने पापा को गिरते हुए देखकर जोड़ से चिल्लाती है,"
“बाबा!!!”
ये देखकर पुरे मंडप में भगदड़ मच जाती है। लोग दौड़ते हुए मंडप पर पहुंचते हैं। बेला दुल्हन के भारी लहंगे में घुटनों के बल गिरकर अपने पिता का सिर अपनी गोद में रख लेती है।
बेला फूट-फूट कर रोती हुई कह रही थी,"
“बाबा देखिए ना, मैं यहीं हूं कुछ नहीं हुआ कुछ नहीं ” बगल में उसकी छोटी बहन भी रोए जा रही थी और लगातार अपने बाबा को जगाने के लिए हिलाए जा रही थी।।
गांव के लोग चिल्लात हैं, कोई पानी लाता है, कोई डॉक्टर को बुलाने भागता है। लेकिन रिवांश वहीं खड़ा रहता है—जैसे उस पर कोई असर ही नहीं हो रहा हो।
रिवांश की आंखें एक पल के लिए घूंघट की हुई बेला और उसके पिता पर टिकती हैं पर अगले ही पल वो मुड़कर तेज़ कदमों से मंडप छोड़ कर तेजी से वहां से चला जाता है।
शादी की शहनाई अब सिर्फ दर्द का संगीत बन चुकी थी।
बेला अपने पिता के सिर को गोद में रखे रो रही थी। थोड़ी ही देर में वहां डॉक्टर आ जाते है और तुरंत ही चेक करने की बाद कहते हैं,"इन्हें हार्ट अटैक आया है।
He is no more.....
ये खबर सुनते ही सभी के होश ही उड़ जाते है और एक ही पल में कशिश और उसकी बहन की दुनिया ही पलट जाती हैं।।
वहीं खड़े थे विक्रम कुंद्रा, रिवांश के पिता। जिन्हें ये खबर सुनते ही पैरों तले की जमीन ही खिसक गई थी।। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि आज उनका खुद का बेटा उनके दोस्त के मौत का कारण बन जायेगा। उनकी की गई गलती की सज़ा उनके दोस्त और उसके बच्चों को भुगतना पड़ेगा।।
अपने बेटे की बेरुखी और इस अनहोनी को देखकर उनकी आंखें शर्म और पश्चाताप से झुक गईं थीं।।
सालो पहले उन्हीं के कहने पर यह रिश्ता तय हुआ था।
उन्होने ने ही बेला के पिता शिवप्रसाद रावत को वचन दिया था कि उनको एक बेटा मिलेगा, जो उनकी बेटी को एक सम्मानित ज़िंदगी देगा।।
लेकिन आज, उसी बेटे ने उनकी गर्दन शर्म से झुका दी थी।
विक्रम कुंद्रा आगे बढ़कर, कांपती आवाज़ में कहते है,"
“शिवप्रसाद मेरे दोस्त मैं... मैं बहुत ही ज्यादा शर्मिंदा हूं
ये रिश्ता मैंने तय किया था वचन मैंने दिया था
और मेरा ही बेटा उसे निभा नहीं सका ”
वो भी घुटनों के बल गिरते हैं, और बेला के पास आकर उसके सिर पर हाथ रखते हैं।
विक्रम बेला से कहता है,"
“बेटा मैं जानता हूं इस समय मेरे शब्द खोखले लगेंगे
पर एक पिता के तौर पर मैं तुमसे माफ़ी मांगता हूं।”
ये सुनकर बेला कुछ नहीं कहती। उसकी तो रोते रोत हालत ही खराब हो रही थीं।
उसके आंसुओं में सिर्फ एक ही सवाल था—क्या उसकी ज़िंदगी सिर्फ एक वचन थी?
रिवांश तो अब तक मंडप से जा चुका था।
लेकिन उस शाम, उसने एक बेटी से उसका पिता, एक पिता से उसका वचन, और एक लड़की से उसका यकीन छीन लिया था।
अगले दिन,
रात के साढ़े दस बजे थे।
शादी के मंडप की लपटें अब राख में बदल चुकी थीं,
पर बेला की आंखों में आग अभी भी भड़क रही थी।
अपने पिता का क्रिया कर्म करके वो कमरे का दरवाज़ा बंद कर वो ज़ोर से रोने लगती है।।
फिर अचानक, उसने अपनी चूड़ियां फेकनी शुरू कर दी।टूटने की आवाज़ जैसे उसके अंदर की चीख़ को शब्द दे रही हो।
बेला गुस्से में, खुद से कहती हैं,"
“एक धोखे की बुनियाद पर सजे हर रंग को मिटा दूंगी मैं
जिस रिश्ते ने मेरे बाबा को छीन लिया, उसकी कोई भी निशानी नहीं रहेगी मेरे पास ”
वो अपनी मांग में लगा सिंदूर जोर से मिटाने लगी।
गले की मंगलसूत्र को खींच कर उतार फेंका,
और फिर अलमारी खोलकर दुल्हन का जोड़ा निकाला—
बेला ने उसे ज़मीन पर पटका और उस पर मिट्टी का तेल डाल दिया।
तभी अचानक से ही दरवाज़ा खुलता है—उसकी बुआ, उर्मिला देवी अंदर आ जाती हैं।
उर्मिला देवी हैरान होकर कहती है,"
“बेला! ये क्या कर रही है बेटा,! होश में आओ!!
अपनी बुआ की आवाज़ सुनकर बेला का हाथ रुक जाता है, लेकिन आंखों में आंसुओं की जगह अब नफ़रत झलक रही थी।
फिर बेला चीख़ते हुए कहती है,"
“बुआ! ये कपड़े, ये गहने, ये सिंदूर—सब उस रिश्ते की गवाही देते हैं जो कभी था ही नहीं!
मैं नहीं रख सकती इन झूठी निशानियों को मैं नहीं रख सकती बाबा की मौत की यादें!”ये कहते हुए वो फिर से रोने लगती है 😭😭
उर्मिला देवी उसकी तरफ बढ़ती हैं, और उसका चेहरा थाम लेती हैं। फिर भराए गले से कहती हैं,"
“जानती हूं तू टूटी है, जानती हूं तूने सब कुछ खो दिया
लेकिन बेटा, आग में सब जलाकर, दिल का दर्द नहीं बुझता।
ये जोड़ा तूने बाबा के आशीर्वाद से पहना था
उसे इस तरह मिटा देगी, तो वो तुझे कैसे आशीर्वाद देंगे ऊपर से?”
ये सुनकर बेला कुछ पल चुप रह जाती है।
उसके हाथ से तेल की बोतल नीचे गिरती है। वो फूट-फूट कर अपनी बुआ से लिपट जाती है।
“बुआ अब कौन है मेरा ?”
“मैं हूं और वो छोटी है ना,
तू नहीं टूटी, बेटा तू बस कुछ वक़्त के लिए झुकी है।
और जब तू दोबारा खड़ी होगी ना, तो ये दुनिया देखेगी कि बेला रावत क्या चीज़ है।”
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